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गीता प्रेस, गोरखपुर >> आध्यात्मिक प्रवचन

आध्यात्मिक प्रवचन

जयदयाल गोयन्दका

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :156
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1007
आईएसबीएन :81-293-0838-x

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इस पुस्तिका में संग्रहीत स्वामीजी महाराज के प्रवचन आध्यात्म,भक्ति एवं सेवा-मार्ग के लिए दशा-निर्देशन और पाथेय का काम करेंगे।

॥ श्रीहरि: ॥

 

सत्संग की अमूल्य बातें


१. यावन्मात्र जीवों की सेवा करनी और उनको सुख पहुँचाना चाहिये।

२. परमात्माको हर समय याद रखनेकी चेष्टा करनी चाहिये।

३. एक बातके धारण करनेसे सब बातें आ जायें-ऐसी बात विवेकपूर्वक वैराग्य है। जिनके वैराग्य हो गया, उनको सब कुछ हो गया।

४. वैराग्य होनेका उपाय है वैराग्यवान् पुरुषोंका संग।

५. समयकी अमूल्यता-
(१) हर समय उद्यमशील होना चाहिये, पाँच मिनट भी फालतू नहीं बिताना चाहिये।
(२) समयको उत्तरोत्तर कीमती बिताना चाहिये।
(३) फालतू आदमियोंसे बात करनेकी तो फुरसत ही नहीं होनी चाहिये।
(४) फालतू काम नहीं करना चाहिये, जिस काममें न स्वार्थ हो और न परमार्थ हो, ऐसे कामके पास ही नहीं जाना चाहिये।
(५) निकम्मा नहीं रहना चाहिये।

६. तीन प्रकारकी कमाई करे तो बहुत उत्तम है-
(१) मनसे भजन ध्यान।
(२) वाणीसे सत्य-प्रिय वचन, भगवन्नामका जप
(३) शरीरके द्वारा परोपकार

७. नीचे लिखे अनुसार समय बितानेसे जल्दी ही कल्याण हो
(१) सहनशील बनना, भारी-से-भारी आपत्तिको हर्षके साथ सहे। संकट सहने से मनुष्य पक्का होता है।
(२) यावन्मात्र जीवोंपर दया करनी चाहिये।
(३) निरन्तर भगवत्-चिन्तन करना चाहिये।
इन तीनों बातोंका पालन करनेवाला पारसका भी महापारस, आनन्दमूर्ति बन जाता है, आनन्दका सदात्रत देनेवाला बन जाता है।

८. धन्यवाद देने लायक पुरुष-
(१) जिनका एक क्षण भी व्यर्थ नहीं जाता।
(२) जिनका मन भगवान् के चिन्तनमें रहता है।
(३) जिनकी वाणी भगवान् के जपमें और सत्य-भाषणमें रहती है।
(४) भगवान् के गुण, प्रेम, प्रभाव, रहस्यके कथामृतके श्रवण, मनन, पठन-पाठनमें जिनका समय बीतता है। (५) जिनके हाथ, पैर और शरीरसे दूसरोंका उपकार होता है।

९. बड़े रहस्यकी बात-
(१) इस स्वर्गाश्रम ऋषिकेशमें गंगातटपर वटवृक्षके दृश्यको याद करें और परमात्मासे प्रार्थना करें कि हे प्रभो, हे दीनबन्धी आपकी प्रेम भक्ति में ऐसा समय बीतनेका अवसर फिर कब आयेगा।
(२) जो बातें यहाँ हुई हैं उनको बारम्बार याद करना चाहिये, परमात्माके प्रेम-प्रभावके विषयकी चर्चाको बार-बार याद करें, मनन करें और एकान्तमें बैठकर विचार कर अपना कर्तव्य निश्चित करें तथा तदनुकूल आचरण करें।
(३) जो बात आत्मामें युक्तिसंगत हितकारी निश्चित हो जाय, उसको कटिबद्ध होकर काममें लायें। ऐसा करनेसे प्रत्यक्ष फल परमात्माकी प्राप्ति हो सकती है।
(४) जिन पुरुषोंको परमात्मा कोसों दूर मालूम देता था या दीखता ही नहीं था वही परमात्मा इस प्रकारके साधनसे उन्हीं पुरुषोंको रोम रोम, पत्तों-पत्तोंमें दीखने लगेगा। संसार दु:खमयके बदले आनन्दमय हो जायेगा।
(५) भगवत्-स्वरूपमें निष्ठावालेको परमशान्तिका साम्राज्य प्राप्त हो जायेगा। चारों तरफ शान्ति ही शान्तिकी स्थिति हो जायेगी।
(६) एक वैराग्यका आश्रय लेनेसे ये सारी बातें हस्तामलकवत् प्रत्यक्ष हो जायेंगी।

१०. इस मनुष्य-जन्मके समयकी कीमतके समान देवताओंके समयकी कीमत भी नहीं है।

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    अनुक्रम

  1. सत्संग की अमूल्य बातें

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